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Sunday, November 7, 2010

वक़त ने डाल दी है
अनगिनत सलवटें
मेरी जिंदगी की सफ़ेद चादर पर
हर सलवट
एक पूर्ण कहानी
जिसमे है
कुछ टूटने व् कुछ बनने का अहसास
कली के मुस्कराने से लेकर
फूल बनकर मुरझा जाने तक का फासला
मैंने शराब की तरह पिया है
और छलक कर गिरी हुई बूंदों ने
नज्मो की शक्ल अखतिआर कर ली है

4 comments:

  1. बहुत खूब ....
    वो जो गुलाब बनके मुरझाया .....
    मिट्टी में महक हो गयी....
    उसके प्याले से छलकी जो इक बूँद ....
    दरिया की झलक हो गयी ....

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  2. good.. achhi rachna hai anita ji,, jo subject aadmi ko kuredte hai un pr aapne klm chlai hai

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  3. Bahut achha kaha hai,Badhai.

    Meethesh Nirmohi,Jodhpur.

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